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रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध – Essay on Rabindranath Tagore

Last Updated on April 11, 2022 by Md Arshad Noor Leave a Comment

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 1 (100 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि थे। उनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोर-साँको में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम शारदा देवी (माता) और महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) था। टैगोर ने अपनी शिक्षा घर में ही विभिन्न विषयों के निजी शिक्षकों के संरक्षण में ली। कविता लिखने की शुरुआत इन्होंने बहुत कम उम्र में ही कर दी थी। वो अभी-भी एक प्रसिद्ध कवि बने हुए हैं क्योंकि उन्होंने हजारों कविताएँ, लघु कहानियाँ, गानें, निबंध, नाटक आदि लिखें हैं। टैगोर और उनका कार्य पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। वो पहले ऐसे भारतीय बने जिन्हें “गीतांजलि” नामक अपने महान लेखन के लिये 1913 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो एक दर्शनशास्त्री, एक चित्रकार और एक महान देशभक्त भी थे जिन्होंने हमारे देश के राष्ट्रगान “जन गण मन” की रचना की।

रबीन्द्रनाथटैगोर पर निबंध 2 (150 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, देशभक्त, दर्शनशास्त्री, मानवतावादी और चित्रकार थे। महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर में अपने पैतृक निवास में 7 मई 1861 को कलकत्ता के जोर-साँको में उनका जन्म हुआ। वो अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे हालांकि दूसरों से अलग थे। निजी शिक्षकों के द्वारा घर पर विभिन्न विषयों के बारे में अपनी उचित शिक्षा और ज्ञान को उन्होंने प्राप्त किया। जब रबीन्द्र बहुत छोटे थे तभी से इन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था और उनमें से कुछ पत्रिकाओं में भी छपे थे।

वो उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड गये लेकिन वहां शिक्षा की पारंपरिक व्यवस्था के द्वारा संतुष्ट नहीं हुए और वो भारत लौटकर और बंगाल के वीरभूमि के बोलपूर में शांतिनिकेतन के नाम से अपना खुद का स्कूल खोला। यही स्कूल बाद में कॉलेज़ बना और उसके बाद एक विश्वविद्यालय (विश्व-भारती)। 1913 में “गीतांजलि” के लिये इनको नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ब्रिटिश क्राउन के द्वारा इन्हें नाइटवुड से भी सम्मानित किया गया लेकिन जलियाँवालाबाग में नरसंहार के खिलाफ विरोध स्वरुप में उन्होंने उस सम्मान को वापस कर दिया।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 3 (200 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महान भारतीय कवि और अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे। बंगाल, 19वीं शताब्दी में ब्रह्म समाज के वो एक नेता थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर से ली जबकि इंग्लैड में उच्च शिक्षा ली। अपने औपचारिक स्कूलिंग के लिये 17 वर्ष की आयु में वो इंग्लैंड गये हालांकि पूरा नहीं कर सके। उनकी रुचि और मानवता से उनके नज़दीकी जुड़ाव ने देश की प्रति कुछ सामाजिक सुधार करने के लिये उनका ध्यान खींचा। तब उन्होंने एक स्कूल शांतिनिकेतन की शुरुआत की जहां वो शिक्षा के उपनिषद के आदर्शों का अनुसरण करते हैं। उन्होंने खुद को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में भी शामिल किया और अपने गैर-भावनात्मक और मनमौजी तरीकों का अनुगमन किया। गाँधीजी उनके समर्पित मित्र थे। देश के प्रति उनके आपार प्रेम को देखा गया जब देश में अंग्रेजी नीतियों के ख़िलाफ़ एक विरोध के रुप में 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया सम्मान उन्होंने वापस कर दिया था।

वो एक अच्छे लेखक थे और उन्होंने अपने पैदाइशी स्थान बंगाल में लेखन में सफलता प्राप्त की। लेखन में उनकी लगातार सफलता ने भारत के आध्यात्मिक विरासत की एक प्रसिद्ध आवाज़ बनने के लिये उनको काबिल बनाया। मनासी, सोनर तारी, गीतांजलि, गीतिमलया, बलाका आदि जैसे उनके कविताओं के कुछ अद्वितीय संस्करण हैं। कविताओं के अलावा, वो नृत्य नाटक, संगीत नाटक, निबंध, यात्रा वृतांत, आत्मकथा आदि लिखने के लिये भी प्रसिद्ध थे।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 4 (250 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर रबीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम से भी जाने जाते थे और गुरुदेव के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। वो एक महान भारतीय कवि थे जिन्होंने देश को कई प्रसिद्ध लेखन दिया। बेशक, वो कालीदास के बाद एक महानतम कवि थे। आज, वो पूरी दुनिया में एक महानतम कवि और सभी जीवन काल के लेखक के रुप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (पिता) और शारदा देवी (माता) के घर 1861 में 7 मई को कलकत्ता के जोर-साँको में एक अमीर और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। 1875 में जब टैगोर 14 वर्ष के थे तभी इनकी माता का देहांत हो गया था। अपने शुरुआती उम्र में ही इन्होंने कविता लिखने में रुचि को विकसित कर लिया था। वो एक चित्रकार, दर्शनशास्त्री, देशभक्त, शिक्षाविद्, उपन्यासकार, गायक, निबंध लेखक, कहानी लेखक और रचनात्मक कार्यकर्ता भी थे।

उपन्यास और लघु कथा के रुप में उनका महान लेखन मानव चरित्र के बारे में उनकी बुद्धिमत्ता, गहरे अनुभव और समझ की ओर इशारा करता है। वो एक ऐसे कवि थे जिन्होंने देश को बहुत प्यारा राष्ट्रगान “जन गण मन” दिया है। उनके कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं: “गीतांजलि, आमार सोनार बांग्ला, घेर-बेर, रबीन्द्र संगीत” आदि। “गीतांजलि” के उनके महान अंग्रेजी संस्करण लेखन के लिये 1913 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वो पहले भारतीय और पहले एशियाई थे जिनको ये सम्मान प्राप्त हुआ। वो 1902 में शांतिनिकेतन में विश्वभारती यूनिवर्सिटी के संस्थापक थे। जलियाँवाला बाग नरसंहार के ख़िलाफ़ एक विरोध में 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिये गये एक अवार्ड “नाइटवुड” को इन्होंने अपने देश और देशवासियों के प्रति अन्तहीन प्यार के कारण वापस कर दिया। इनका महान लेखन आज भी देश के लोगों को प्रेरणा देता है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 5 (300 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे जो गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध थे। टैगोर का जन्म कलकत्ता के जोर-साँको में 7 मई 1861 को एक अमीर सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके अभिवावक महर्षि देवेन्द्रनाथ (पिता) और शारदा देवी (माता) थीं। वो बचपन से ही कविताएँ लिखने के शौक़ीन थे। एक महान कवि होने के साथ ही, वो एक मानवतावादी, देशभक्त, चित्रकार, उपन्यासकार, कहानी लेखक, शिक्षाविद् और दर्शनशास्त्री भी थे। वो देश के सांस्कृतिक दूत थे जिन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति के ज्ञान को फैलाया है। वो अपने समय के एक प्रतिभासंपन्न बच्चे थे जिसने बहुत महान कार्य किये। कविता लेखन के क्षेत्र में वो एक उगते सूरज के सामान थे।

कविताओं या कहानी के रुप में अपने लेखन के माध्यम से लोगों के मानसिक और नैतिक भावना को अच्छे से प्रदर्शित किया। आज के लोगों के लिये भी उनका लेखन अग्रणी और क्रांतिकारी साबित हुआ है। जलियाँवाला बाग नरसंहार की त्रासदी के कारण वो बहुत दुखी थे जिसमें जनरल डायर और उसके सैनिकों के द्वारा अमृतसर में 1919 में 13 अप्रैल को महिलाओं और बच्चों सहित बहुत सारे निर्दोष लोग मारे गये थे।

वो एक महान कवि होने के साथ ही एक देशभक्त भी थे जो हमेशा जीवन की एकात्मकता और इसके भाव में भरोसा करता है। अपने पूरे लेखन के द्वारा प्यार, शांति और भाईचारे को बनाये रखने के साथ ही उनको एक रखने और लोगों को और पास लाने के लिये उन्होंने अपना सबसे बेहतर प्रयास किया। अपनी कविताओं और कहानियों के माध्यम से प्यार और सौहार्द के बारे में उन्होंने अच्छे से बताया था। टैगोर के पूरे जीवन ने एक दूसरे से प्यार और सौहार्द के स्पष्ट विचार को भी उपलब्ध कराया। निम्न वक्तव्यों से उनका देश के प्रति समर्पण दिखायी देता है, “मेरा देश जो हमेशा भारत है, मेरे पितर का देश है, मेरे बच्चों का देश है, मेरे देश ने मुझे जीवन और मजबूती दी है”। और दुबारा, “मैं फिर से अवश्य भारत में पैदा होऊँगा”।

रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध 6 (400 शब्द)

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म भारत के कलकत्ता में 7 मई 1861 को देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर हुआ था। उनका जन्म एक समृद्ध और सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर निजी शिक्षकों के माध्यम से प्राप्त की और कभी स्कूल नहीं गये हालांकि उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड गये थे। टैगोर 8 वर्ष की उम्र से ही कविता लिखने लगे थे। उनकी कविताएँ स्यूडोनिम भानुसिंहों के तहत प्रकाशित हुयी जब वो केवल 16 वर्ष के थे। कानून की पढ़ाई करने के लिये 1878 में वो इंग्लैंड चले गये हालांकि बिना पढ़ाई को पूरा किये वापस भारत लौट आये क्योंकि उन्हें एक कवि और लेखक के रुप में आगे बढ़ना था।

इंग्लैंड से लंबी समुद्री यात्रा के दौरान उन्होंने अपने कार्य गीतांजलि को अंग्रेजी में अनुवादित किया। जिस वर्ष गीतांजलि का प्रकाशन हुआ था उसी वर्ष के समय उन्हें साहित्य के लिये नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने लेखन में भारतीय संस्कृति की रहस्यवाद और भावनात्मक सुंदरता को दिखाया जिसके लिये पहली बार किसी गैर-पश्चिमी व्यक्ति को इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाज़ा गया। एक प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही साथ, वो एक प्रतिभाशाली लेखक, उपन्यासकार, संगीतकार, नाटक लेखक, चित्रकार और दर्शनशास्त्री थे। कविता और कहानी लिखने के दौरान कैसे भाषा पर नियंत्रण रखना है इसकी उन्हें अच्छे से जानकारी थी। वो एक अच्छे दर्शनशास्त्री थे जिसके माध्यम से स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भारतीय लोगों की बड़ी संख्या को उन्होंने प्रभावित किया।

भारतीय साहित्य के लिये उनका योगदान बहुत बड़ा और अविस्मरणीय है। उनके रबीन्द्रसंगीत में दो गीत बहुत प्रसिद्ध हुए क्योंकि वो दो देशों के राष्ट्रगान हैं “जन मन गण” (भारत का राष्ट्रगान) और “आमार सोनार बांग्ला” (बांग्लादेश का राष्ट्रगान)। उनकी रचनात्मक लेखन, चाहे वो कविता या कहानी के रुप में हों, आज भी उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। शायद वो पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने असरदार लेखन से पूरब और पश्चिम के बीच की दूरी को कम कर दिया।

उनकी एक और रचना ‘पूरवी’ थी जिसमें उन्होंने सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि जैसे बहुत सारे विषयों के तहत संध्या और सुबह के गीतों को दर्शाया है। 1890 में उनके द्वारा मनासी लिखा गया था जिसमें उन्होंने कुछ सामाजिक और काव्यात्मक कविताओं को संग्रहित किया था। उनके ज़्यादतर लेखन बंगाली लोगों के जीवन पर आधारित होते थे। उनकी एक दूसरी रचना ‘गलपगुच्छा’ थी जिसमें भारतीय लोगों की गरीबी, पिछड़ापन और निरक्षरता पर आधारित कहानियों का संग्रह था। उनकी दूसरी कविता संग्रह जैसे सोनार तारी, कल्पना, चित्रा, नैवेद्या आदि और गोरा, चित्रांगदा और मालिनी, बिनोदिनी और नौका डुबाई, राजा और रानी आदि जैसे उपन्यास हैं। वो बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक पुरुष थे जिन्होंने मुश्किल वक्त़ में दूसरों की बहुत मदद की। वो एक महान शिक्षाविद् थे इस वजह से उन्होंने एक शांति का निवास-स्थान, शांतिनिकेन नाम के एक अनोखी यूनिवर्सिटी की स्थापना की। भारत की स्वतंत्रता को देखे बिना ही रबीन्द्रनाथ टैगोर 7 अगस्त 1941 को दुनिया से चल बसे।

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