मनुष्य पर निबंध – Essay on Human in Hindi

मनुष्य पर निबंध 1 (200 शब्द)

मनुष्य भगवान की सबसे अद्भुत रचना है। ईश्वर ने मनुष्य को सोच और तर्क की शक्ति से सुसज्जित किया और यही कारण है कि वह अन्य जीवों से इतना अलग है। मनुष्य का पृथ्वी पर सिर्फ अस्तित्व ही नहीं है बल्कि यहाँ उपलब्ध विभिन्न संसाधनों का उपयोग करके वह अपनी पूर्णता में भी रहता है।

मानव प्रजातियां बंदरों और वानर से विकसित हुई हैं। प्राचीन युग के बाद से मनुष्य का विकास बहुत तेज़ी से हुआ है। उस समय के मानव की विशाल कद-काठी होती थी, वह कच्चा भोजन खाता था, गुफाओं में रहता था और पत्तियों और जानवरों की त्वचा से बने थोड़े से कपड़े पहनता था। आग का अविष्कार करने के बाद वह खाने से पहले जानवरों के मांस और सब्जियों को आग से पका कर खाने लगा। समय गुज़रने के साथ कई आविष्कार हुए। मनुष्य ने गुफाओं से बाहर आकर रहने के लिए घर बनाए। जल्द ही गांवों का गठन हुआ और फिर धीरे-धीरे कस्बें और शहर अस्तित्व में आये। परिवहन के साधन भी विकसित हुए और उन्होंने अन्य कई चीजों की भी खोज़ की। तो मूल रूप से मनुष्य के विकास के साथ कई चीजों का आविष्कार हुआ और वे भी समय गुजरने के साथ विकसित हुए।

आज मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति कर चुका है। उन्होंने अपनी जिंदगी आरामदायक और मनोरंजक बनाने के लिए कई चीजों का आविष्कार किया है। हालांकि मनुष्य अविष्कार करने में इतना मग्न हो गया है कि उसने पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ दिया है। वातावरण जो पहले ताजा और शुद्ध था अब प्रदूषित हो गया है। इससे वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा उत्पन्न हो गया है और विभिन्न प्रकार की बीमारियों को भी जन्म दिया है।

मनुष्य पर निबंध 2 (300 शब्द)

प्रस्तावना

मनुष्य ने हमेशा समूह में रहने को प्राथमिकता दी है। आदम के ज़माने से मनुष्य समूह में रहा है। इससे वह सुरक्षित महसूस करता था और जंगली जानवरों से खुद को बचाता भी था। यह एक ऐसा मानवीय व्यवहार है जो समय के साथ कभी नहीं बदला। लोग अभी भी सामाजिकता से प्यार करते हैं। समाज, परिवार और संस्कृति मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

मनुष्य एक सामाजिक पशु है

एक महीने के लिए आदमी को अकेला छोड़ दें और फिर देखें कि उसके साथ क्या होता है। वह अकेलेपन और अवसाद से पीड़ित हो जाएगा और इसके कारण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बीमारियां भी पैदा हो जाएँगी। एक आदमी के लिए अकेला रहना संभव नहीं है। मनुष्य हमेशा से एक सामाजिक पशु रहा है। वह आसपास के लोगों से प्यार करता है। अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ अपने विचार साझा करना, उनके साथ समय व्यतीत करना और उनके साथ अलग-अलग गतिविधियों में शामिल होने से उन्हें अच्छा महसूस होता है और उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का भाव मिलता है।

पहले के समय में भारत के लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे। संयुक्त परिवार प्रणाली के कई फायदे थे। यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अच्छा था। यह बुजुर्गों के लिए भी अच्छा साबित हुआ पर हाल ही में संस्कृति में बहुत बदलाव हुआ है। युवा पीढ़ी की सोच अलग है और विभिन्न कारणों से वह स्वतंत्र भी रहना चाहती है।

आज जहाँ युवा पीढ़ी अपनी गोपनीयता चाहती है और अपने तरीके से काम करना चाहती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें अपने आसपास लोगों की आवश्यकता महसूस नहीं होती है। उनके पास ऐसा करने के अपने स्वयं के तरीके हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और सोशल नेटवर्किंग साइटों को इतनी लोकप्रियता नहीं मिली होती।

निष्कर्ष

मानव मन और मानव बुद्धि तेज़ी से बढ़ रही है पर अगर कोई चीज स्थिर है तो वह है सकुशल और सुरक्षित महसूस करने की आवश्यकता। प्रियजनों के साथ संपर्क में रहने से और उनके हमारे साथ रहने से सुरक्षा की यह भावना आती है।

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मनुष्य पर निबंध 3 (400 शब्द)

प्रस्तावना

भगवान ने सभी मनुष्यों को समान रूप से बनाया है। ईश्वर ने ही मनुष्य के अस्तित्व के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार किया है। हालांकि मनुष्य की हरकतों ने इन दोनों में गड़बड़ी पैदा कर दी है। पुरुषों ने अपनी सीमाएं बनाईं और अपने धर्म, जाति, पंथ, आर्थिक स्थिति और पता नहीं क्या क्या के आधार पर कई मतभेदों को जन्म दिया। वह अपने कद और स्तर के लोगों के साथ मिलना-जुलना पसंद करता है और अपने से नीचे स्तर के लोगों की अनदेखी करता है। मानव द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली प्रौद्योगिकी की प्रगति ने पर्यावरण के सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप किया है जिससे यह विनाश के कगार पर पहुँच गई है।

मानव और संस्कृति

आदमी की परवरिश पर संस्कृति का बड़ा प्रभाव होता है। यह काफी हद तक एक व्यक्ति के दिमाग और संपूर्ण व्यक्तित्व के आकार को प्रभावित करती है। यही कारण है कि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों की अलग-अलग सोच होती है। एक चीज या स्थिति जो एक संस्कृति से संबंधित लोगों को सामान्य दिखाई देती है वह दूसरों को बिल्कुल विचित्र लग सकती है। भारत के लोगों के मन में उनकी संस्कृति के लिए उच्च सम्मान है। भारतीय अपने बड़ों का आदर करने और उनके आदेशों का पालन करने में विश्वास करते हैं। विदेशी राष्ट्रों के विपरीत भारत में बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं चाहे वे वयस्क ही क्यों ना हो जाएँ।

भारतीय खुले दिल से सभी का स्वागत करते हैं और अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का सम्मान करते हैं। विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग यहां शांति और सद्भाव में रहते हैं। इसी तरह अन्य संस्कृतियों के लोग भी अपने मूल्यों से जुड़े रहते हैं जो उनके व्यक्तित्व और सोच को सही आकार देने में सहायता करती है।

मनुष्य और पर्यावरण

जहाँ एक तरफ मानव जीवन में सुधार हुआ है और विभिन्न तरीकों से प्रगति भी हुई है लेकिन इस प्रगति के कई नकारात्मक नतीजे भी हैं। इनमें से एक पर्यावरण पर इसके प्रभाव है। औद्योगिक क्रांति समाज के लिए वरदान साबित हुई है। कई लोगों को नौकरी मिल गई और कई नए उत्पादों का मनुष्य के जीवन को आरामदायक बनाने के लिए उत्पादन किया गया। तब से कई उद्योग स्थापित किए गए हैं। हमारे उपयोग के लिए कई उत्पादों का प्रत्येक दिन निर्माण किया जा रहा है। हमारी जीवनशैली का स्तर बढ़ाने के लिए इन उद्योगों में दोनों दिन-प्रतिदिन की वस्तुएं और लक्जरी वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है। जैसे-जैसे जीवन शैली का स्तर बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे पृथ्वी पर जीवन का स्तर बिगड़ता जा रहा है। उद्योगों और वाहनों की बढ़ती संख्या ने हवा, पानी और भूमि प्रदूषण को बढ़ा दिया है।

यह प्रदूषण पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है। प्रदूषण को बढ़ाने के लिए कई अन्य मानव अभ्यास भी योगदान दे रहे हैं। इससे जैव विविधता प्रभावित हुई है और यह मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीवित प्राणियों में भी कई बीमारियों को पैदा कर रहा है।

निष्कर्ष

यह सही समय है जब आदमी को रूक कर यह सोचना चाहिए कि वह कहाँ जा रहा है। यह हमारी संस्कृति की ओर वापिस जाने और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने का समय है। यदि हमारी कार्यवाही इसी तरह जारी रही तो हमारा ग्रह रहने लायक नहीं बचेगा।

मनुष्य पर निबंध 4 (500 शब्द)

प्रस्तावना

मनुष्य की गिनती सबसे बुद्धिमान प्राणी के रूप में होती है। पृथ्वी पर मौजूद अन्य जानवरों के विपरीत मनुष्य कई प्रकार की गतिविधियों में शामिल होता है जो उसे मानसिक रूप से विकसित होने में मदद करती है और उसकी शारीरिक कल्याण को भी प्रभावित करती है। ईश्वर ने इंसान को बुद्धि दी है और उसने अपने जीवन को सहज बनाने के लिए इसका पूरा उपयोग किया है।

आदि काल का मनुष्य

आज का जीवन हम जिस तरह से जीते है वह उस जीवन से पूरी तरह से भिन्न है जो मनुष्य हजारों साल पहले जीता था। प्राचीन काल या पाषाण युग, लगभग 20 लाख वर्ष पहले का समय, में मनुष्य जंगली जानवरों के बीच जंगलों में रहता था। भोजन खोजने के लिए संघर्ष करते हुए उसने जंगली जानवरों का शिकार किया, मछलियों और पक्षियों को पकड़ा और अपनी भूख को बुझाने के लिए उन्हें खाया। वह फल, सब्जियों और पत्तियों के लिए पेड़ों पर चढ़ा। इस प्रकार आदि काल के मनुष्य को शिकारी-संग्रहकर्ता के रूप में भी जाना जाता है। वह गुफाओं में रहता था और जानवरों की खाल तथा पत्तियों से बने कपड़े पहनता था। आधुनिक समय व्यक्ति की तरह उस ज़माने का व्यक्ति भी अपने परिजनों के साथ रहना पसंद करता था।

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आदि काल का मनुष्य अक्सर भोजन की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान भटकता रहता था और उन जगहों पर बस जाता था जहां नज़दीक ही नदी या पानी हो। वह एक जगह से दूसरी जगह तभी जाता था जब उसके स्थान पर सारे भोजन के स्रोत खत्म हो जाते थे। पशु और पक्षी भी आम तौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे। चूंकि आदि काल के मनुष्य के लिए भोजन का मुख्य स्रोत जानवर थे इसलिए वह भी उनके साथ चला जाता था। इसके अलावा अलग-अलग पेड़ और पौधें भी विभिन्न मौसमों में फलों और सब्जियों को पैदा करते थे। इस प्रकार आदि काल का मनुष्य भी मौसम के अनुसार चलता था। वह समूहों में इसलिए चलता था क्योंकि इससे उसे सुरक्षा की भावना मिलती थी।

शुरुआती समय में पैदल चलने वाले आदमी ने जल्दी ही पहिये का अविष्कार किया और लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए बैल-गाड़ी का निर्माण किया। उसने पत्थर और लकड़ी की मदद से कई उपकरण भी तैयार किए।

मध्यकाल का मनुष्य

मानव जाति के विकास के रूप में मनुष्य ने गुफा से निकालकर अपने लिए घरों का निर्माण किया। जल्द ही विभिन्न मानव सभ्यताओं का गठन हुआ। जीवन को बेहतर बनाने के लिए नई चीजों का निर्माण करने हेतु मनुष्य का ध्यान भोजन के लिए शिकार से दोस्सरी चीजों की ओर स्थानांतरित हो गया। यह एक नए युग की शुरुआत थी और इस युग में रहने वाले पुरुषों को मध्यकाल का मनुष्य कहा जाने लगा। इसी दौरान शारीरिक गुणों और साथ ही मनुष्य की सोच के स्तर में पाषाण युग के मनुष्य की तुलना में बहुत अधिक विकास हुआ।

आधुनिक काल का मनुष्य और उसके बाद का मनुष्य

जीवन शैली, संस्कृति और अन्य पहलुओं का विकास हुआ और उसके बाद के मनुष्य को आधुनिक काल के मनुष्य के रूप में जाना जाने लगा। मनुष्य के विकास ने उसे आधुनिक मानव का नाम दिया। आधुनिक काल का मनुष्य दिखने, व्यवहार और मानसिक क्षमता के मामले में आदी काल के मनुष्य से काफी अलग है। कुछ मानवीय हस्तक्षेपों और कई प्राकृतिक कारकों की वजह से इतने सारे परिवर्तन मनुष्य की जिंदगी में आए।

निष्कर्ष

मनुष्य का विकास हुआ और जिस तरह से वह शुरुआती समय में रहता था अब वह उससे बिल्कुल अलग है। शुरुआती समय का आदमी निश्चित रूप से शारीरिक रूप से मजबूत था और आधुनिक समयके मानव की तुलना में अधिक फिट भी था। हालांकि अगर मानसिक पहलू की बात करे तो यह समय के साथ कई गुना बढ़ गया है। मानव मस्तिष्क शक्ति बढ़ी है और लगातार अभी भी बढ़ रही है। जो आविष्कार हमने किए हैं उनके द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है। जिस तरह से पाषाण युग में मनुष्य रहता था उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

मनुष्य पर निबंध 5 (600 शब्द)

प्रस्तावना

मनुष्य को जैसा आज हम देखते हैं यह विकास के लाखों वर्षों का परिणाम है। हम और कोई नहीं बल्कि इस विशाल ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा हैं जिसके चीजों को एकसाथ रखने और समय-समय पर परिवर्तन लाने के अपने रहस्यमय तरीके हैं।

मनुष्य का विकास

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कहा जाता है कि मनुष्य के पूर्वज बंदर जैसे दिखते थे जिनसे वह विकसित हुआ है। चिम्पांजी और गोरिल्ला हमारे निकटतम रिश्तेदार हैं। बहुतायत में इस पर शोध किया गया है कि मनुष्य का विकास कैसे हुआ और विभिन्न शोधकर्ताओं के अलग-अलग सिद्धांतों के नतीज़े काफी हद तक एक समान हैं। सभी सिद्धांतों में चार्ल्स डार्विन द्वारा का सिद्धांत बहुत लोकप्रिय है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द ओरिजिन ऑफ़ स्पेसिज’ में विस्तार से इंसान के विकास को वर्णित किया है जो 1859 में प्रकाशित हुई थी। डार्विनवाद सिद्धांत के अलावा विकास के सिंथेटिक और लैमेरिक सिध्द सिद्धांत ने भी लोगों का बहुत ध्यान खींचा है। हालांकि इस विषय पर शोध अभी भी चल रहा है और कई नए निष्कर्ष हर बार प्राप्त किए जाते हैं।

मानव प्रजातियां बंदर से आदमी के रूप तक जाने के समय में काफ़ी विकसित हुई है। इससे पहले मनुष्य कद-काठी काफी बड़ी थी, बड़े कान, तेज दांत और मोटी त्वचा। वह आज की तरह दिखने वाले मनुष्य से पूरी तरह अलग दिखता था। सदियों से मनुष्य लगातार विकसित हुआ और अभी भी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से विकसित हो रहा है।

मनुष्य के विकास पर नए निष्कर्ष

वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का दावा है कि मनुष्य का विकास अभी भी हो रहा है और 2050 तक एक नई प्रकार की मानव प्रजातियां अस्तित्व में आ जाएंगी। मनुष्य की औसत आयु 100-120 साल तक बढ़ने की संभावना है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि मानव प्रजाति बुढ़ापे में भी बच्चों को जन्म देने में सक्षम हो जाएगी।

अगर हम खुद को देखें तो पता चलेगा कि हम बहुत बदल चुके हैं, विकसित हुए हैं और पिछली शताब्दी में रहने वाले लोगों से काफी अलग भी हैं। उस समय के लोग कृषि गतिविधियां करते हुए विकसित हुए थे जिसमें शारीरिक श्रम शामिल था। इन गतिविधियों में नियमित व्यायाम होने के कारण उनकी अच्छी कद-काठी हुआ करती थी। वे घी, तेल और चीनी से लिप्त अच्छा भोजन खाते थे और कष्टदायक कार्यों में शामिल होते थे। यहां तक ​​कि उन्होंने सारी उम्र बड़ी मात्रा में घी और चीनी खाई तब भी उन्हें दिल की समस्या, मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि जैसी बीमारियां नहीं छू पाई क्योंकि वे मेहनत करने में पसीना बहाते थे। उद्योगों में विकास से इनमें नौकरी कर रहे व्यक्तियों की प्रकृति में बड़ा बदलाव आया है। आज कल के युवा शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं क्योंकि वे मेज-कुर्सी पर बैठकर नौकरी करना अधिक पसंद करते हैं जहाँ शारीरिक गतिविधियां ना के बराबर है। ऐसी कई बीमारियां देखने को मिली हैं जिन्हें पिछली शताब्दी में कभी सुना भी नहीं था।

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति की वजह से ज्यादातर लोग दिन के अधिकांश समय अपने फोन से चिपके रहते हैं। अपने बगल में बैठे लोगों को नजरअंदाज करते हुए लोग अक्सर चैटिंग करना या वीडियो देखना पसंद करते हैं। यह भी विकास का ही एक हिस्सा है। जिस तरह से यह विकसित हो रहा है उसका लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है।

जैसे लोग इन दिनों मोबाइल फोन और टैब पर अपना अधिकांश समय बिताते हैं वैसे ही 2050 तक लोग आभासी वास्तविकता में अपना सबसे अधिक समय खर्च करेंगे। ऐसा कहा जा रहा है कि मनुष्य निकट भविष्य में कृत्रिम बुद्धि पर भरोसा करेगा और रोबोटों द्वारा उसके दिन-प्रतिदिन के अधिकांश कार्य पूरे होंगे।

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के कारण ये सभी महत्वपूर्ण परिवर्तन होंगे। मनुष्यों के जीवन का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा।

निष्कर्ष

मनुष्य का विकास वास्तव में एक चमत्कार है। प्रारंभ में प्रकृति ने मनुष्य के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। आने वाले वर्षों में ऐसा लगता है कि मनुष्य खुद अपनी इंटेलिजेंस के माध्यम से आगे के विकास के लिए जिम्मेदार होगा। समय के बदलने की संभावना है और हम आशा करते हैं कि जो भी बदलाव हो वह अच्छे के लिए हो।

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